क्या होता है चुनाव घोषणा पत्र ?

देहरादून, शिवम । देश में चुनावी माहौल चरम पर है आगामी 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान होने है ।लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी-कांग्रेस सहित कई पार्टियां चुनावी घोषणापत्र जारी कर चुकी है, चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां अपना घोषणा पत्र जारी करती हैं।
क्या आप जानते हैं कि विभिन्न पाटियों द्वारा जारी यह घोषणा पत्र कैसे तैयार किया जाता है ?
इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट एवं चुनाव आयोग की क्या गाइडलाइन हैं?

बता दें कि चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने के लिए राजनीतिक दल कठिन मेहनत करते हैं, क्योंकि इसी घोषणापत्र को उन्हें जनता के सामने प्रस्तुत करना होता है। घोषणा पत्र के लिए सभी दल एक विशेष टीम का गठन करते हैं, जो पार्टियों की नीति और जनता की मांग के अनुरूप मुद्दों का चयन करती है। फिर पार्टी के पदाधिकारियों और अन्य हितधारकों के साथ इस पर चर्चा की जाती है। इसके बाद आर्थिक, सामाजिक एवं अन्य मुद्दों को लेकर नीतियां तैयार की जाती हैं और इसे घोषणा पत्र के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन केवल लोगों को लुभाने के उद्देश्य से पार्टियां घोषणा पत्र में कोई भी गलत या भ्रामक वादा नहीं कर सकती हैं। आसान शब्दों ने समझें तो चुनाव घोषणापत्र उन वादों का एक संकलन है जो, पार्टी सत्ता में आने के बाद कार्य करेगी ।

इसे लेकर चुनाव आयोग की कुछ गाइडलाइन हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है।

सुप्रीम कोर्ट भी इसे लेकर निर्देश दे चुका है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने मामले पर चर्चा के लिए मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक की। इसके बाद सभी दलों की सहमति से चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता के तहत घोषणा पत्र को लेकर दिशा-निर्देश तय किए थे, जिसका संसद या राज्य के किसी भी चुनाव के लिए चुनाव घोषणा पत्र जारी करते समय राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को पालन करना आवश्यक है।

आयोग की गाइडलाइन कुछ इस प्रकार हैं:-

चुनावी घोषणापत्र में संविधान में निहित आदर्शों और सिद्धांतों के प्रतिकूल कुछ भी नहीं होगा और यह आदर्श आचार संहिता के अन्य प्रावधानों की भावना के अनुरूप होगा।
संविधान में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत राज्यों को नागरिकों के लिए विभिन्न कल्याणकारी उपाय करने के आदेश हैं, इसलिए चुनावी घोषणापत्रों में ऐसे कल्याणकारी उपायों के वादे पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। हालांकि, राजनीतिक दलों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिए, जिनसे चुनाव प्रक्रिया की शुचिता प्रभावित हो या मतदाताओं पर उनके मताधिकार का प्रयोग करने में अनुचित प्रभाव पड़ने की संभावना हो।
घोषणापत्र में पारदर्शिता, समान अवसर और वादों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए यह अपेक्षा की जाती है कि घोषणापत्र में किए गए वादे स्पष्ट हों और इसे पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे, इसकी भी जानकारी हो। मतदाताओं का भरोसा उन्हीं वादों पर हासिल करना चाहिए, जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो।

चुनावों के दौरान निषेधात्मक अवधि (मतदान शुरू होने से 48 घंटे पहले) के दौरान कोई भी घोषणापत्र जारी नहीं किया जा सकेगा।

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