
देहरादून : इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट ने आज थिएटर दिवस पर, शिक्षा में रंगमंच (थिएटर इन एजुकेशन) को नई दिशा देने के लिए डॉ. अतुल शर्मा के योगदान की सराहना की है। आईटीएम इस अनूठी पहल को शुरू करने वाला पहला संस्थान बना है, जहां छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ नाट्यकला के माध्यम से सीखने का अवसर मिल रहा है।
डॉ. अतुल शर्मा, देहरादून के एक प्रतिष्ठित हिंदी कवि, लेखक और रंगमंच से जुड़े व्यक्तित्व हैं। उन्होंने साहित्य को केवल एक शौक नहीं, बल्कि जीवन की मूलभूत आवश्यकता बताया है। उनके अनुसार, जीवन के विविध अनुभवों ने उन्हें अब तक अनेक पुस्तकों को लिखने की प्रेरणा दी है। इनमें ‘थकती नहीं कविता’, ‘बिना दरवाजा का समय’, ‘नदी एक लंबी कविता’, ‘जन-गीतों का वातावरण’ जैसी काव्य संग्रहों के अलावा, ‘जवाब दावा’, ‘दृश्य अदृश्य’, ‘ननू की कहानी’ जैसे उपन्यास भी शामिल हैं।
इसके अलावा, उन्होंने प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रकवि रहे अपने पिता श्रीराम शर्मा प्रेम के समग्र साहित्य पर आधारित पाँच पुस्तकों का संपादन किया है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान कई लोकगीत लिखे, जिनमें ‘छीन के लेंगे उत्तराखंड’ और ‘नदी तू बहती रहना’ जैसे गीत आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं।
रंगमंच के क्षेत्र में भी डॉ. शर्मा का योगदान सराहनीय है। उनकी पुस्तक ‘उन्नीस नाटक’ और नाटकों के लिए लिखे गए गीतों ने इस विधा को समृद्ध किया है। ‘थिएटर इन एजुकेशन’ की इस नई पहल के माध्यम से आईटीएम छात्रों को शिक्षा को अधिक रोचक और व्यावहारिक बनाने का अवसर दे रहा है।
आईटीएम चेयरमैन निशांत थपलियाल का मानना है कि इस अनूठी पहल से छात्रों में सृजनात्मकता, अभिव्यक्ति क्षमता और आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलता है। संस्थान डॉ. अतुल शर्मा को इस अभूतपूर्व योगदान के लिए विशेष रूप से धन्यवाद करता है और उनके मार्गदर्शन से ‘थिएटर इन एजुकेशन’ को आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है।