देववन में पवासी महासू देवता करते हैं प्राकृतिक कुंड में शाही स्नान ।

उत्तरकाशी के पाशबील थोक क्षेत्र के अराध्य पवासी महासू महाराज प्रति वर्ष शाही स्नान के लिए देवन जाते हैं।

चार भाई महासू महाराज ( बाशिक,बोड़ा,पवासीऔर चालदा) के तीसरे स्थान के पवासी महाराज प्रति वर्ष तीन दिन के प्रवास पर प्रसिद्ध तीर्थ स्थल देवन शाही स्नान करने जाते हैं । पवासी महाराज की डोली की पैदल यात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु देववन जाते हैं।

लोक मान्यता है कि देवन में यदि निसंतान दंपति संतान सुख प्राप्ति के लिए वरदान मांगते तो उन्हें संतान प्राप्ति का सुख मिलता है ।

स्थानीय पत्रकार राजेश चौहान ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि लोक मान्यताओं के अनुसार वरदान के बाद संतान सुख मिलने पर दंपति को संतान के साथ शाही स्नान की पद यात्रा के दौरान देववन पहुंचना पड़ता है। देववन पहुंचने पर ही वरदान में प्राप्त हुई संतान का मुंडन संस्कार किया जाता है। यही कारण है कि आज भी कई दंपति अपनी-अपनी संतान को लेकर

और संतान प्राप्ति के लिए देववन की यात्रा करते हैं ।

बताते चलें कि देव वन घनघोर देवदार के जंगल में स्थित है यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 12 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पैदल ही तय करनी पड़ती है। देव यात्रा में बंगाण क्षेत्र की तीन पट्टियों कोठीगाड, पिगल व मासमोर पट्टी के हर घर से प्रति व्यक्ति को पहुंचना अनिवार्य होता है क्योंकि इन्हीं तीन पट्टीयों में विशेष कर पवासी महाराज के एक-एक वर्ष का बंरांश पूजे जाते हैं ।प्रति वर्ष 6 माह के लिए पवासी महाराज का पूजन खडियार मंदिर में किया जाता है ।

उसके पश्चात पांच माह के लिए पट्टी के थानों में जैसे कोठी गाड का बवांशा चिवां गांव में,पिंगल पट्टी का भुटाणु या माकुंडी गांव में तथा मासमौर का बामसू मंदिर में पूजन किया जाता है।

देव वन‌ प्रवास पर जाने का कार्यक्रम या दिन अक्षय तृतीया जिसे स्थानीय बोली में अखतिरी कहा जाता है के दिन तीनों पट्टी के कारदार स्याणे पवासी महाराज के पुजारी,महासू महाराज के वजीर पवासी महाराज की आज्ञा अनुसार ठडियार मन्दिर में तय किया जाता है।

 

कोठीगाड़ से देववन गोकुल, बालचा, जलन, होकर तथा पिंगल पट्टी से रवाधार ,जलन, डामठी, थुनारा,भुटाणु, लमबाथाच, खुरसीलाईन व मासमौर पट्टी के लोग ठडियार से प्रथिल ,थली, देवती और बामसू से सीधा देववन पहूंचा जा सकता है।

बाहर से आने वाले श्रद्धालु पहली रात को महासू मंदिर हनोल या त्यूनी में विश्राम कर सकते हैं दूसरे दिन सुबह ही ठडियार से 17 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पैदल तय कर देववन मंदिर में पहुंचते हैं। पवासी महाराज भी प्रतिवर्ष ठडियार मन्दिर से ही देववन प्रवास पर निकलते हैं। श्रद्धालुओं को अपनी सुविधा अनुसार रात्रि विश्राम व खानपान की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती है प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है वहां पर आकर स्वयं ही भोजन पकाना पड़ता है वहां कोई होटलआदि लगाना वर्जित है।

 

देववन की मान्यता है कि प्रवास के दिनों को छोड़कर आगे पीछे यहां पानी उपलब्ध नहीं मिलता लेकिन जैसे ही महाराज वहां पहुंचते हैं तो हजारों श्रद्धालुओं के लिए पानी उपलब्ध हो जाता है। श्रद्धालुओं के नहाने के लिए यहां कुंड भी बना है । देव कृपा से सुबह तक वह कुंड पानी से भर जाता है जिसे वहां श्रद्धालु प्रातः काल 4:00 बजे ब्रह्ममुहुर्त में उठकर ठंडे पानी से स्नान करते हैं । वहीं पीने के लिए मंदिर के साथ ही मंदिर के नीचे से पानी निकलता है।

अक्सर शाही स्नान के लिए बाहर से भी देवताओं के साथ श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के अंदर ही महाराज के शाही स्नान के लिए कुंड बना है जिस कुंड में महाराज शाही स्नान करते हैं उस कुंड में पुजारी भी स्नान नहीं कर सकता।

पवासी महाराज के देवन प्रवास पहुंचने के दूसरे दिन तीनों पट्टीयों की तरफ से भंडारा दिया जाता है । प्रसाद को पुजारी ही बनाते हैं ।

लोक मान्यता है कि देववन में 64 योगिनी काली माता की पूजा-अर्चना भी की जाती है ।जो दर्शनीय एवं अद्भुत है उस समय कई महिलाओं पर योगिनी व परियां अवतरित होती है जिन्हें पुजारी व देवमाली शांत करते हैं और उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

एक विशाल रई के पेड के नीचे छोटे बच्चों का मुंडन संस्कार पुजारी के द्वारा किया जाता है।

पत्रकार राजेन्द्र चौहान बताते हैं कि मान्यताऔं के अनुसार भगवान शिव पांडवों से बचकर जब भाग गए थे तो वह ऋषिकुट देववन पहुंचे थे वहां उन्होंने 16 सलोनी 9 लाख मात्रियों कांडारानी कालकाओं को प्रकट किया और उनकी रक्षा के लिए पाताल भैरव जिसे कैलाश वीर कहा जाता है को रखा और स्वयं केदारनाथ चले गए।

कैलाश या कइलाथ महाराज पश्वा पर अवतरित होकर पूरी रात श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए मैदान के बाहर चक्कर लगाते रहते हैं ताकि किसी श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई देवीय समस्या ना हो।

कैलाश महाराज का भी यहां पर मंदिर बना है निसंतान दंपति इस मंदिर में रात्रि जागरण करते हैं। पवासी महाराज यहां पहुंचने पर स्वयं ही 9 लाख मात्रियां या परियां या बणकियां प्रकट हो जाती है जिसे बाद में पवासी महाराज का देवमाली उन्हें शांत करता है

पवासी महाराज के पुजारी डगोली गांव के नौटियाल लोग हैं इनके अतिरिक्त कोई दूसरा पुरोहित पवासी महाराज का पुजारी नहीं हो सकता।

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