
देहरादून । हिंदू धर्म में साल के सभी के महीनों का अपना एक खास महत्व होता है और सावन माह देवो के देव महादेव को समर्पित होता है. इस दौरान भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से उनका पूजन करते हैं. इस साल सावन का महीना 22 जुलाई 2024 से शुरू होने जा रहा है. जहां पूरा देश अभी सावन का इंतजार कर रहा है वहीं उत्तराखंड में आज यानि 16 जुलाई से ही सावन की शुरुआत हो गई है. क्योंकि आज उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला मनाया जा रहा है और हरेला के साथ वहां सावन की शुरुआत हो जाती है. उत्तराखंड में हरेला का पर्व बहुत ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस पर्व का सीधा संबंध प्रकृति से है और इसका अर्थ है हरियाली का दिन. आइए जानते हैं हरेला का महत्व और इस दिन गाया जाने वाला लोकगीत.
हरेला का प्रकृति से है गहरा रिश्ता
हिंदू कैलेंडर के अनुसार पांचवें महीने में हरेला का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. इस दिन उनका विधि-विधान से पूजन किया जाता है. वैसे तो पूरे उत्तराखंड में हरेला का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन कुमाऊं क्षेत्र में इसका विशेष महत्व माना गया है. इस दिन स्कूल व कॉलेजों में रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन होता है और पौधारोपण किया जाता है. कहते हैं कि हरेला के दिन यदि पौधारोपण किया जाए तो वह पौधा फलता-फूलता है और खुशहाली लेकर आता है.
कैसे मनाते हैं हरेला का पर्व?
हरेला के साथ ही उत्तराखंड में सावन की शुरुआत हो जाती है. इस दौरान सावन लगने से 9 दिन पहले एक लकड़ी की टोकरी या डिकोरी में मिट्टी डालकर इसमें जौ, गेहूं, धान, उड़द या भट्ट के बीजों को बोया जाता है. इसके बाद 9 दिनों तक इस पात्र में रोजाना जल छिड़का जाता है और दसवें दिन हरेला तैयार हो जाता है. जिसे काटकर परिवार के सदस्य अपने कान के पीछे लगाते हैं. मान्यता है कि हरेला जितना अच्छा उगता है उस साल उतनी ही अच्छी फसल होती है. हरेला के दिन मिट्टी से शिव-पार्वती की प्रतिमा बनाकर उसका पूजन किया जाता है. ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.